Hindi Department

Hindi Department: Kumaun University

हिंदी विभाग का इतिहास डी.एस.बी. परिसर की स्‍थापना से जुड़ा है। यह परिसर 1951 में शासकीय महाविद्यालय रूप में स्‍थापित हुआ और इसी के साथ हिंदी विभाग अस्तित्‍व में आया। अपने स्‍थापना काल से ही डी.एस.बी. परिसर एक उत्‍कृष्‍ट उच्‍चशिक्षा केन्‍द्र रहा है और परिसर के हिंदी विभाग ने उसकी समृद्धि में सदैव योगदान किया। शासकीय महाविद्यालय काल में डॉ.हरिवंशराय कोचर, डॉ.विश्‍वम्‍भरनाथ उपाध्‍याय, डॉ.संकटाप्रसाद उपाध्‍याय, डॉ. ऋषिकुमार चतुर्वेदी, डॉ.छैलबिहारी लाल गुप्‍त, डॉ.पुत्‍तूलाल शुक्‍ल प्रभृति विद्वान विभागाध्‍यक्ष के पद पर आसीन रहे। इसी काल में हिंदी के वरिष्‍ठ आलोचक डॉ. विश्‍वनाथ त्रिपाठी ने भी कुछ समय विभाग में अध्‍यापन कार्य किया, बाद में वे नई नियुक्ति के फलस्‍वरूप दिल्‍ली चले गए। 23 नवम्‍बर 1973 में कुमाऊं विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना के समय डी.एस.बी. कालेज ने विश्‍वविद्यालय परिसर की भूमिका ग्रहण की और हिंदी विभाग विश्‍वविद्यालय के हिंदी विभाग के रूप में स्‍थापित हुआ। तब से अब तक प्रो.राजकुमार गुप्‍त, प्रो.लक्ष्‍मण सिंह बिष्‍ट ‘बटरोही’ अध्‍यक्ष हिंदी विभाग, कु.वि.वि. तथा प्रो. नीरजा टंडन परिसर विभागाध्‍यक्ष रहे। वर्तमान में प्रो.मानवेन्‍द्र पाठक परिसर अध्‍यक्ष हैं। मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार की सांस्‍कृति आदान-प्रदान योजना के अन्‍तर्गत प्रो.राजकुमार गुप्‍त चीन तथा प्रो.बटरोही हंगरी में अतिथि आचार्य के रूप में पदस्‍थापित रहे हैं। हिंदी विभाग, डी.एस.बी.परिसर ने स्‍वयं को हिंदी उच्‍च शिक्षा एवं शोध केन्‍द्र के रूप में विकसित किया है, जिसमें सभी पूर्ववर्ती अध्‍यक्षों एवं सदस्‍यों का महत्‍वपूर्ण योगदान रहा है। विभाग अपने विद्यार्थियों को शोध और रचनात्‍मक विकास के महत्‍वपूर्ण अवसर उपलब्‍ध कराता है। यही कारण है कि हिंदी विभाग, डी.एस.बी.परिसर शोध के केन्‍द्र के रूप में विशेष महत्‍व रखता है और स्‍थानीय के अलावा इलाहाबाद, लखनऊ, दिल्‍ली तथा अन्‍य विश्‍वविद्यालयों के नेट-जे आर एफ छात्र भी शोध के लिए प्रतिवर्ष यहां आते हैं। हमारे कई पूर्व छात्र साहित्‍य, कला, पत्रकारिता, अकादमिक तथा प्रशासनिक जगत में उपलब्धि तथा प्रसिद्धि के शिखर तक पहुंचे हैं। हिंदी विभाग, डी.एस.बी.परिसर ने स्‍वयं को हिंदी उच्‍च शिक्षा एवं शोध केन्‍द्र के रूप में विकसित किया है, जिसमें सभी पूर्ववर्ती अध्‍यक्षों एवं सदस्‍यों का महत्‍वपूर्ण योगदान रहा है। विभाग अपने विद्यार्थियों को शोध और रचनात्‍मक विकास के महत्‍वपूर्ण अवसर उपलब्‍ध कराता है। यही कारण है कि हिंदी विभाग, डी.एस.बी.परिसर शोध के केन्‍द्र के रूप में विशेष महत्‍व रखता है और स्‍थानीय के अलावा इलाहाबाद, लखनऊ, दिल्‍ली तथा अन्‍य विश्‍वविद्यालयों के नेट-जे आर एफ छात्र भी शोध के लिए प्रतिवर्ष यहां आते हैं। हमारे कई पूर्व छात्र साहित्‍य, कला, पत्रकारिता, अकादमिक तथा प्रशासनिक जगत में उपलब्धि तथा प्रसिद्धि के शिखर तक पहुंचे हैं। पूर्व विभागाध्‍यक्ष प्रो. नीरजा टंडन ने ‘इक्‍कीसवीं सदी के सरोकार और स्‍त्री विमर्श का यथार्थ’ शोध परियोजना पूर्ण की तथा 24 अक्‍टूबर 2018 को कंसंर्ड थियेटर लखनऊ द्वारा प्रेरणा प्रदीप सम्‍मान से सम्‍मानित की गईं। पूर्व विभागाध्‍यक्ष प्रो. टंडन व प्रो. मानवेन्‍द्र पाठक ने समय-समय पर वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्‍दावली आयोग- नई दिल्‍ली के लिए विषय विशेषज्ञ के रूप में कार्य किया। वर्तमान विभागाध्‍यक्ष प्रो. चन्‍द्रकला रावत केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्‍थान आगरा की ‘पूर्वोत्‍तर शिक्षण सामग्री निर्माण परियोजना के अन्‍तर्गत हिन्‍दी-कुमाउनी अध्‍येता कोश निर्माण हेतु कुमाउनी भाषा विशेषज्ञ के रूप में 2019 से कार्यरत हैं। प्रो. शिरीष कुमार मौर्य ने पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्‍त विश्‍वविद्यालय बिलासपुर(छत्‍तीसगढ़) के लिए हिन्‍दी कथा साहित्‍य पाठ्यसामग्री निर्माण में विशेषज्ञ सम्‍पादक व परीक्षक के दायित्‍व का निर्वहन किया है। प्रो. मौर्य की बीस पुस्‍तकें प्रकाशित हुई हैं और कविता के लिए अंकुर मिश्र पुरस्‍कार, लक्ष्‍मणप्रसाद मंडलोई सम्‍मान, वागीश्‍वरी सम्‍मान तथा गिरीश तिवारी ‘गिर्दा जनगीत सम्‍मान प्राप्‍त हुए हैं। पं.दीनदयाल उपाध्‍याय वि.वि. गोरखपुर के प्रो.दीपक त्‍यागी के सम्‍पादन में प्रतिष्ठित पत्रिका ‘प्रस्‍थान’ का विशेषांक भी प्रो. मौर्य के कविकर्म पर प्रकाशित हुआ है। विगत वर्षों में विभाग के प्राध्‍यापकों ने स्‍नातक एवं स्‍नातकोत्‍तर स्‍तर के पाठ्यक्रम की लगभग दस पुस्‍तकों का सम्‍पादन किया है। पूर्व विभागाध्‍यक्ष प्रो. मानेवन्‍द्र पाठक के संयोजन में ‘वैश्‍वीकरण : हिन्‍दी भाषा और साहित्‍य’, ‘समकालीन हिन्‍दी कविता : नए संदर्भ’ तथा ‘भक्तिकालीन कविता के सामाजिक सरोकार’ विषयों पर राष्‍ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन किया गया। प्रो. चन्‍द्रकला रावत के संयोजन में द्वि-दिवसीय तथा सात दिवसीय – दो भाषा कोश विषयक कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। उच्‍चस्‍तरीय शोध एवं रचनात्‍मक विकास के लिए विभाग में सभी आंतरिक अनुशासनों के कुशल विशेषज्ञ प्राध्‍यापक उपलब्‍ध हैं। प्रो. मानवेन्‍द्र पाठक रीतिकालीन साहित्‍य तथा भारतीय साहित्‍यशास्‍त्र, प्रो. नीरजा टंडन काव्‍यशास्‍त्र, शैलीविज्ञान तथा अपभ्रंश साहित्‍य, प्रो. चन्‍द्रकला रावत लोक-साहित्‍य, प्रो. निर्मला ढैला बोरा कथा एवं स्‍मारक साहित्‍य, डॉ. शिरीष कुमार मौर्य (सुपरिचित हिंदी कवि-आलोचक) हिंदी आलोचना, वैचारिकी तथा आधुनिक कविता, डॉ.शुभा मटियानी एवं डॉ. माया गोला कथा साहित्‍य के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखते हैं - विभागीय सदस्‍यों के अकादमिक वृत्‍त में इसका विस्‍तृत विवरण दिया गया है। इसके अलावा हम समय-समय पर बाह्य विशेषज्ञ विद्वानों की सहायता भी व्‍याख्‍यान, परिचर्चा, संवाद जैसे अन्‍य रूपों में अपने विद्यार्थियों को उपलब्‍ध कराते हैं।

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